दिल्ली की डेयरियों से निकलने वाला गोबर अब बेकार नहीं जाएगा। सरकार इसके उपयोग के लिए योजना बना रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ हाल ही में हुई एक बैठक में दिल्ली नगर निगम ने कचरे के स्थानीय स्तर पर और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से निपटान करने की अपनी योजनाएं शेयर की थीं।
दिल्ली सरकार ऊर्जा उत्पादन के नए तरीकों पर काम कर रही है। इसके तहत डेयरियों से निकलने वाले गोबर का उपयोग और ओखला लैंडफिल साइट पर निर्माण एवं विध्वंस (सीएंडडी) वेस्ट रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करना शामिल है।
एक अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ हाल ही में हुई एक बैठक में दिल्ली नगर निगम ने कचरे के स्थानीय स्तर पर और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से निपटान की अपनी योजनाएं शेयर की थीं।
एक महत्वपूर्ण पहल मदनपुर खादर में चालू बायोगैस संयंत्र है, जहां डेयरियों से निकलने वाले गोबर को ऊर्जा में बदला जाता है। इसके अलावा एमसीडी गोबर को नालियों में जाने से रोकने के लिए विशेष नालियां और निपटान टैंक बना रही है। उन्होंने बताया कि इस मॉडल को अन्य डेयरी कॉलोनियों में भी लागू करने के लिए लगभग 15 करोड़ रुपए की जरूरत है।
एमसीडी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली 11 अधिकृत डेयरियों में से एक मदनपुर खादर में डेयरी मालिकों द्वारा 10 टन प्रतिदिन (टीपीडी) क्षमता वाला बायोगैस संयंत्र स्थापित किया गया है।अधिकारी ने बताया कि निगम नंगली डेयरी में एक प्रदूषण नियंत्रण परियोजना भी लागू कर रहा है, जिसमें एक अलग नाले और गोबर को निकास नाले में जाने से रोकने के लिए एक गोबर-निपटान कक्ष का निर्माण शामिल है। इस पायलट परियोजना की अनुमानित लागत 1.7 करोड़ रुपए है और अन्य डेयरी कॉलोनियों में भी इस मॉडल को लागू करने के लिए 15 करोड़ रुपए का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है।
एक अन्य प्रमुख परियोजना ओखला लैंडफिल साइट पर एक नया निर्माण और विध्वंस (सीएंडडी) वेस्ट रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने की योजना है। इस सुविधा का उद्देश्य प्रतिदिन 1000 टन सीएंडडी वेस्ट का प्रसंस्करण करना है, जिससे दिल्ली में प्रतिदिन पैदा होने वाले लगभग 5500 से 6000 टन निर्माण वेस्ट की समस्या का समाधान होगा।
दिसंबर 2026 तक चालू होने वाली यह सुविधा जैव-खनन के माध्यम से उपलब्ध कराई गई 8 एकड़ पुनः प्राप्त भूमि पर बनाई जाएगी। रीसाइकल मेटेरियल - टाइलें, ईंटें, ब्लॉक, इंटरलॉकिंग पेवर्स, कर्बस्टोन, चेकर्ड टाइलें, स्टोन डस्ट और कंक्रीट ईंटें का उपयोग सरकारी परियोजनाओं में किया जाएगा। एक अधिकारी ने बताया कि एमसीडी ने सभी लोक निर्माण कार्यों में इन रीसाइकिल मेटेरियल का उपयोग अनिवार्य कर दिया है।
दिल्ली में वर्तमान में सार्वजनिक उपयोग के लिए 106 निर्दिष्ट सीएंडडी वेस्ट डंपिंग स्थल हैं। बड़े जनरेटरों (300 टन प्रतिदिन से अधिक उत्पादन करने वाले) के लिए, प्रसंस्करण संयंत्रों में सीधे निपटान अनिवार्य है। उचित संग्रहण और रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए एमसीडी 311 ऐप और स्थानीय कनिष्ठ अभियंताओं (जेई) के माध्यम से निगरानी लागू की जा रही है।
इस बीच मानसून के दौरान जलभराव को रोकने के लिए एमसीडी शिंघोला में एक गाद निपटान स्थल विकसित कर रही है, जो पहले कचरे से भरा हुआ था। 6.61 एकड़ में फैले इस स्थल से 7.6 लाख मीट्रिक टन पुराना कचरा साफ किया गया है। अब इसका इस्तेमाल नरेला, केशवपुरम, रोहिणी, करोल बाग, सिविल लाइंस, सिटी एसपी, शाहदरा दक्षिण और शाहदरा उत्तर जैसे क्षेत्रों के नालों से गाद निपटान के लिए किया जा रहा है। इस प्रयास का उद्देश्य मानसून की तैयारियों को सुव्यवस्थित करना और नालों के दोबारा जाम होने से रोकना है।
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