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राज दरबार::::वह दिन चले गए

  वह दिन चले गए कांग्रेस की किसी राज्य में कैसी भी स्थिति हो, पर टिकट के दावेदारों की कोई कमी नहीं होती। दावेदार हर सीट पर ऐसी दावेदारी करते...

 


वह दिन चले गए कांग्रेस की किसी राज्य में कैसी भी स्थिति हो, पर टिकट के दावेदारों की कोई कमी नहीं होती। दावेदार हर सीट पर ऐसी दावेदारी करते हैं कि अगर पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया तो उस सीट के अलावा आसपास की कई और सीटें भी पार्टी जीत जाएगी। लेकिन इस बार दावेदार परेशान हैं। वह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर अपनी दावेदारी कहां और किस तरह करें। टिकट के एक दावेदार ने जब पार्टी के वरिष्ठ नेता से पूछा तो उन्होंने साफ कहा कि वे दिन अब लद गए। टिकट के लिए आपको क्षेत्र में अपनी मौजूदगी और मजबूती दिखानी होगी, तब जाकर कही दावेदारों में नाम आ सकता है।

दरअसल, पिछले कुछ चुनावों में पार्टी वरिष्ठ नेताओं की सिफारिश के बजाए सर्वे के आधार पर टिकट दे रही है। विपक्ष से यारी उत्तराखंड की राजनीति आजकल गर्म है। देखा जाए तो कारण बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन जिस प्रकार से चुनाव नजदीक है, उसके मद्देनजर इसके गहरे अर्थ लगाए जा रहे हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की चाय पर मुलाकात और उसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी मुस्कुराती तस्वीरों से सूबे की राजनीति में एनडी तिवारी के जमाने के दिनों की याद लोग करने लगे हैं। उस दौर में तिवारी अक्सर समय निकाल कर पूर्व मुख्यमंत्री और अपने विपक्षी भगत सिंह कोश्यारी से मिलने जाया करते थे और तब चर्चा थी कि राज्य में विपक्ष तो है लेकिन मित्र विपक्ष है। अब इस मुलाकात को भी लेकर माना जा रहा है कि यह विपक्ष से दोस्ती की कवायद है? उधर, कांग्रेस खेमे से भी आवाज उठ रही है कि चुनाव के निकट होने के चलते वे भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं लेकिन उनके वरिष्ठ नेता निजी संबंधों को मजबूत करने में लगे हुए हैं? अंदाज से आबाद उत्तर प्रदेश में दिल्ली की कृपा से मंत्री बने एक नेताजी अपने अंदाज को लेकर चर्चा में हैं। कभी वह अफसरों की तारीफ करते हैं तो कभी धमका देते हैं। विभाग में अपनी पकड़ नहीं बना पाए हैं। इसलिए अधिकारी सुनते नहीं हैं। लेकिन उन्हें धमका कर मंत्री सुर्खियां बटोर लेते हैं। शुरुआत में वे रोज अधिकारियों की प्रशंसा करते थे। लेकिन जल्दी ऊब गए। एक दिन उन्होंने बैठक में अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाई। कहा, आप जनता की बात नहीं सुनते। उनके इस रूप पर अफसर और जनता सभी हतप्रभ रह गए। इसलिए उनके दरबार में दुखियारे लोगों का आना बढ़ गया। एक दिन मंत्री समस्याएं सुनते-सुनते ऊब गए तो जयश्री राम कहकर निकल गए। अगले दिन उनका नया रूप देखने को मिला। उन्होंने अधिकारियों को ललकारा कि अगर मैंने कार्रवाई कर दी तो राष्ट्रपति भवन भी नहीं बचा पाएगा। दिन बदला तो फिर नया अंदाज दिखा। कहने लगे कि मैं अपने विभाग में एक जेई तक का तबादला नहीं कर सकता। सिर्फ नाम का मंत्री हूं। कांग्रेस पर नजर? सांसदों व पूर्व सांसदों के क्लब कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव में रोचकता और रोमांच बढ़ गया है। सचिव प्रशासन के पद के लिए भाजपा के ही दो सांसद आमने-सामने हैं। संसद सत्र के दौरान दोनों ही जोरदार अभियान चला रहे हैं। ऐसे में भाजपा के सांसदों व पूर्व सांसदों के मतों में तो बंटवारा तय ही है, लेकिन इसमें विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस की भूमिका बढ़ गई है। उसके सदस्य जिसके पक्ष में जाएंगे, वह मजबूत साबित होगा। भाजपा के कई सदस्य अभी दुविधा में हैं, कि किसका पक्ष लें। कुछ तो आलाकमान के रुख का इंतजार कर रहे हैं कि उसका झुकाव किस तरफ है।




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