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एनजीटी को धन शोधन निवारण के तहत जांच करने का आदेश देने का अधिकार नहीं-सुप्रीम कोर्ट

  नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को किसी कंपनी या संस्था के खिला...

 


नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को किसी कंपनी या संस्था के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलएड) के तहत जांच शुरू करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय को आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने पर्यावरण हितों की अनदेखी से जुड़े मामले में एनजीटी के उस फैसले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें एक निजी कंपनी के खिलाफ ईडी को धन शोधन निवारण कानून के तहत कथित अपराध की जांच करने का आदेश दिया था। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने अपने वारिस केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में पारित फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पीएमएलए की धारा 3 एक अनुसूचित अपराध से संबंधित आपराधिक गतिविधि के परिणामस्वरूप संपत्ति के अवैध लाभ पर निर्भर है।

पीठ ने कहा है कि मौजूदा मामले में किसी भी अनुसूचित अपराध के लिए न तो कोई प्राथमिकी है और न ही पीएमएलए के तहत निर्धारित विभिन्न पर्यावरण संरक्षण कानूनों के तहत ऐसे अपराधों का आरोप लगाते हुए कोई शिकायत दर्ज की गई है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि एनजीटी को 2010 के एनजीटी अधिनियम की धारा 15 के तहत प्रदत्त शक्तियों के दायरे में रहकर की अपना कार्य करना चाहिए। पीठ कहा है कि धन शोधन निवारण के तहत अपराध की जांच करने का आदेश देने की शक्ति पीएमएलए के तहत गठित न्यायालय या संवैधानिक अदालतों के पास होगी, लेकिन एनजीटी द्वारा इसका प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एनजीटी का गठन पर्यावरण संरक्षण, वनों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों पर प्रभावी और शीघ्र विचार सुनिश्चित करने के लिए किया गया है, जिसमें किसी भी कानूनी अधिकार का प्रवर्तन और व्यक्तियों व संपत्तियों को हुए नुकसान के लिए राहत और मुआवजा देना भी शामिल है। पीठ ने कहा है कि ऐसे में हम एनजीटी के उस फैसले को रद्द करते हैं, जिसके तहत प्रवर्तन निदेशालय को अपीलकर्ता कंपनी मेसर्स सीएल गुप्ता एक्पोर्ट लिमिटेड के खिलाफ जारी आदेश को रद्द करते हैं। अधिक से अधिक मुआवजा वसूलने की है शक्ति सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून का शासन राज्य या उसकी एजेंसियों को पर्यावरण हितों की अनदेखी और संबंधित कानून के उल्लंघन के मामलों में भी ‘अधिक से अधिक मुआवजा वसूलने की अनुमति नहीं देता। पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की गणना के लिए कथित प्रदूषक के टर्नओवर पर निर्भरता को अस्वीकार कर दिया।




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