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700 साल पुरानी पत्ते शाह दरगाह पर देश-विदेश से आते हैं लोग, क्या है इसकी मान्यता

 दिल्ली में पत्तेशाह दरगाह परिसर में बने लगभग 50 साल पुराने ढांचे का एक हिस्सा शुक्रवार दोपहर अचानक ढह गया, जिसमें कई लोग बाल-बाल बचे। हादसा...


 दिल्ली में पत्तेशाह दरगाह परिसर में बने लगभग 50 साल पुराने ढांचे का एक हिस्सा शुक्रवार दोपहर अचानक ढह गया, जिसमें कई लोग बाल-बाल बचे। हादसा उस समय हुआ जब मन्नतें मांगने और ताबीज लेने आए दर्जनों अनुयायी मौलवी के पास मौजूद थे।

दरगाह हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के नजदीक और हुमायूं के मकबरे के बिल्कुल पास स्थित है। प्रवेश द्वार हरे रंग का है और उस पर संगमरमर की पट्टिका लगी है, जिस पर दरगाह पत्ते वाली हजरत शम्सुद्दीन उतावला रहमतुल्लाह अंकित है। यहां हजरत कादरिया की दरगाह और एक मस्जिद भी मौजूद है। इतिहासकार राणा सफवी बताती हैं कि हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने शिष्यों को हजरत शम्सुद्दीन के पास भेजते थे, ताकि उनकी दुनियावी और दीनी इच्छाएं पूरी हों।


शम्सुद्दीन के बारे में मतभेद हैं। कहा जाता है कि वे या तो सुहरवर्दी सिलसिले के संत थे, या हजरत तुर्कमान बयाबानी के, या फिर हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के मुरीद थे। दरगाह की सबसे बड़ी पहचान यहां के पेड़ से जुड़ी है। मान्यता है कि मजार के पास लगे पेड़ का पत्ता, जो बताशे और गुलाब की पंखुड़ी में लपेटकर मौलवी द्वारा दिया जाता है।


हुमायूं के मकबरे को कोई नुकसान नहीं हुआ : एएसआई


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने स्पष्ट किया कि हादसे वाली जगह उनकी देखरेख में नहीं आती और इससे हुमायूं के मकबरे को कोई नुकसान नहीं हुआ। एएसआई के अधिकारियों के अनुसार, यह एक विश्व धरोहर स्थल है और यहां समय-समय पर संरक्षण कार्य होता रहता है। दिल्ली सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. आरके पटेल ने बताया कि ढहने वाला हिस्सा हुमायूं के मकबरे की चारदीवारी से सटी मस्जिद का था, जो एएसआई की संपत्ति में शामिल नहीं है।




 
 
 

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