दिल्ली हाईकोर्ट ने किरायेदारों के अधिकारों को मजबूत करने वाला एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई किरायेदार अपने बिजली ...
दिल्ली हाईकोर्ट ने किरायेदारों के अधिकारों को मजबूत करने वाला एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई किरायेदार अपने बिजली मीटर का लोड कम कराना चाहता है तो इसके लिए उसे मकान मालिक से अनापत्ति पत्र (एनओसी) की आवश्यकता नहीं है। वह स्वयं आवेदन देकर यह काम करवा सकता है।
जस्टिस मिनी पुष्करणा की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि यहां मामला सीधे-सीधे बिजली उपयोग से जुड़ा है। बिजली का वास्तविक उपभोक्ता किरायेदार है, इसलिए उसे यह अधिकार होगा कि वह अपनी आवश्यकता के अनुसार बिजली लोड कम करा सके। मकान मालिक का किराये से मिलने वाला लाभ प्रभावित नहीं होता, इसलिए इस प्रक्रिया में उसकी अनुमति लेना जरूरी नहीं है। बेंच ने कहा कि किरायेदार को वास्तविक खपत से ज्यादा बिल चुकाने के लिए मजबूर करना न्यायसंगत नहीं है। कई बार संपत्ति विवादों के चलते किरायेदारों को अनावश्यक बोझ उठाना पड़ता है।
बिजली कंपनी को चार सप्ताह में कार्रवाई के आदेश
हाईकोर्ट ने इस मामले में किरायेदार की याचिका को स्वीकार करते हुए बिजली कंपनी बीएसईएस को निर्देश दिया कि वह संबंधित किरायेदार का मीटर लोड 16 केवीए से घटाकर उसकी वास्तविक आवश्यकता के अनुसार करे। अदालत ने कहा कि इस आदेश का असर चल रहे संपत्ति विवादों पर नहीं पड़ेगा। यह केवल किरायेदार के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है। साथ ही, अदालत ने बिजली कंपनी को निर्देश दिया कि आवेदन प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर कार्रवाई की जाए।
किरायेदार को दिक्क्त थी
मामला अंसल टॉवर स्थित एक महंगे फ्लैट का है, जहां किरायेदार वर्षों से रह रहा था। फ्लैट की मालिक महिला का निधन हो चुका था और उनकी वसीयत के अनुसार संपत्ति बड़े बेटे की पत्नी के नाम ट्र्रांसफर होनी थी, लेकिन भाइयों के बीच विवाद के चलते संपत्ति का ट्रांसफर नहीं हो पाया। नतीजतन, डेढ़ दशक पुराना बिजली लोड जस का तस बना रहा। किरायेदार का कहना था कि उसकी खपत काफी कम है, लेकिन मीटर का लोड अधिक होने के कारण बिल भी भारी आ रहा था। राहत की उम्मीद में उसने बिजली कंपनी से लोड घटाने का आवेदन किया।
कंपनी ने आवेदन कर दिया था अस्वीकार
बीएसईएस ने किरायेदार का आवेदन यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि बिना मकान मालिक की अनुमति के लोड घटाना संभव नहीं है। मजबूर होकर किरायेदार को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अदालत ने उसके पक्ष में फैसला देते हुए स्पष्ट कर दिया कि मकान मालिक की अनुमति आवश्यक नहीं है।
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