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‘साबुन से धोने पर मर जाता है’, मेनका गांधी की बहन ने रेबीज के वायरस को बताया बेहद नाजुक; भड़के लोग

 दिल्ली-NCR के सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने पर दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विभिन्न पशुप्रेमी अदालत के इस फैसले से बेहद नाराज ह...



 दिल्ली-NCR के सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने पर दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विभिन्न पशुप्रेमी अदालत के इस फैसले से बेहद नाराज हैं और कुत्तों के हक में आवाज उठा रहे हैं। इसी दौरान एक महिला पशुप्रेमी ने ऐसा कुछ कह दिया कि उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और वह लोगों के निशाने पर आ गईं। इस वीडियो में उन्होंने रेबीज को एक बेहद नाजुक वायरस बताया और कहा कि यह घाव को साबुन से धोने पर मर जाता है।

यह बात पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता मेनका गांधी की बहन अंबिका शुक्ला ने 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इसी आदेश के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान कही।

'साबुन से धोने पर मर जाता है रेबीज का वायरस'


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर 'द रेड माइक' हैंडल द्वारा शेयर किए गए इस वीडियो में महिला ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर विरोध जताते हुए कहा, 'रेबीज वायरस तभी फैलता है जब संक्रमण लार के माध्यम से शरीर के अंदर खून तक पहुंचता है। बस यह इसका माध्यम है। मगर यह इतना नाजुक वायरस है कि अगर आप घाव को साबुन से भी धो देते हो, तो रेबीज वायरस मर जाता है।'


शुक्ला ने आगे कहा, 'इसलिए आप देखेंगे कि हमारे देश में जहां 150 करोड़ लोग हैं, लेकिन रेबीज के मरीजों की तादाद बस 54 है, तो इतनी कम क्यों है, क्योंकि एक तो रेबीज बेहद दुर्लभ बीमारी है, दूसरी यह आसानी से फैलती नहीं है। सच में कुत्ते इतनी ज्यादा संख्या में काटते नहीं हैं, जितनी बड़ा मुद्दा इसे बनाया जा रहा है।' सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को 8 सप्ताह के अंदर शेल्टर होम्स (आश्रय स्थलों) में भेजने का आदेश दिया था।


महिला की बातें सुन भड़क गए सोशल मीडिया यूजर्स


रेबीज को लेकर मेनका गांधी की बहन के दिए तर्क से ज्यादातर इंटरनेट यूजर्स असहमत दिखे और उन्होंने शुक्ला की आलोचना करते हुए उनके इस बयान को बेबुनियाद बताया। साथ ही उनसे रेबीज के बारे में और अधिक पढ़ने का अनुरोध किया। लोगों का कहना है कि रेबीज एक ऐसी बीमारी है, जिसके लक्षण दिखाई देने पर वह हमेशा ही लगभग घातक साबित होती है।


'द रेड माइक' की इस पोस्ट पर जवाब देते हुए एक यूजर ने लिखा, 'वैसे मैं डॉक्टर नहीं हूं, लेकिन अपने चिकित्सा ज्ञान के आधार पर मैं स्पष्ट रूप से कह सकता हूं कि रेबीज बिल्कुल भी हल्का वायरस नहीं है, यह एक घातक वायरल रोग है जो नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को प्रभावित करता है और लक्षण दिखाई देने पर लगभग 100% घातक साबित होता है। हालांकि संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए, संभावित रूप से पागल जानवर के काटने के तुरंत बाद घाव को साबुन और पानी से धोने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह घाव से वायरस को हटाने में मदद कर सकता है। लेकिन यह गारंटी नहीं देता कि वायरस पूरी तरह से खत्म हो गया है। इसलिए डॉक्टर से मेडिकल ट्रीटमेंट (जैसे टीके और इम्युनोग्लोबुलिन के साथ एक्सपोजर के बाद प्रोफिलैक्सिस) लेना बेहद महत्वपूर्ण है।'

 

महिला वाली पोस्ट पर जवाब देते हुए एक डॉक्टर ने लिखा, 'अगर बाइट होगा तो वायरस 100% खून में और फिर नर्व में जायेगा, हाइड्रोफोबिया करेगा, साबुन से वायरस नहीं धुलेगा, साबुन से वॉश सिर्फ़ वायरल लोड को कम करने में मदद करेगा, वायरस ख़त्म नहीं करेगा'।


राजस्थान फार्मेसिस्ट आर्मी नाम के यूजर ने लिखा, 'यह बयान गलत है। रेबीज़ एक घातक वायरस है, जो लक्षण दिखने पर लगभग हमेशा जानलेवा होता है। साबुन से घाव धोना वायरस को कम करने में मदद करता है, लेकिन पूर्ण सुरक्षा नहीं देता। तुरंत वैक्सीन और चिकित्सा जरूरी है। WHO/CDC के अनुसार, सिर्फ धुलाई काफी नहीं।'


महिला की बातें सुन गुस्साए एक यूजर ने लिखा, 'अरे वाह एनिमल एक्टिविस्ट, पहले एक बार खुद को रेबीज वाले कुत्ते से कटवाओ फिर कोई वैक्सीन मत लगवाना साबुन से धोकर सही हो जाना! डॉक्टर के पास मत जाया करो, बीमारी होने पर साबुन से ही धो लिया करो! वाह कैसा कुतर्क दिया है, Animal NGO के नाम पर दुकानें चलने वालों सुधर जाओ।'


एक अन्य गुस्साए यूजर ने लिखा, 'इन लोगों को क्या है ये तो ऊंचे-ऊंचे महलों में रहते हैं, घर से बाहर जाना होता है तो ऑनलाइन कार या बाइक बुक करते हैं, रास्ते में तो गरीब पैदल चलते हैं, गरीब को कुत्ता काटे या कुत्ता खा जाए, इन लोगों को फर्क नहीं पड़ता, क्यूंकि गरीब होते हैं मरने के लिए।'


महिला पर नाराजगी जताते हुए एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘अगर ये गलत बोल रही हैं तो इसके खिलाफ मुकदमा होना चाहिए ये सब फ़र्ज़ी ज्ञान देकर किसी के जिंदगी के साथ मजाक कर सकते हैं। कोई डॉक्टर जरूर बताए।’


भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान (ICMR-NIE) ने अपनी जुलाई की रिपोर्ट में एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन का हवाला देते हुए बताया है कि उच्च स्तर की जागरूकता और टीकाकरण के बावजूद, भारत में रेबीज के कारण हर साल 5,700 से ज़्यादा लोगों की जान जा रही है। साथ ही इसमें दी गई जानकारी के अनुसार रेबीज दुर्लभ बीमारी भी नहीं है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे 150 से ज़्यादा देशों और क्षेत्रों में खासकर एशिया और अफ्रीका में एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या बताया है।




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