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बुक लवर हो तो ऐसा… 22 भाषाओं में 15 लाख किताबें, 76 साल के बुजुर्ग ने बनाई अनोखी लाइब्रेरी

 कर्नाटक के मैसूर के पास स्थित केन्नालु गांव है. यहां 76 वर्षीय अनके गौड़ा ने एक ऐसी लाइब्रेरी बनाई है, जहां पर लाखों किताबें हैं. कॉलेज जीव...


 कर्नाटक के मैसूर के पास स्थित केन्नालु गांव है. यहां 76 वर्षीय अनके गौड़ा ने एक ऐसी लाइब्रेरी बनाई है, जहां पर लाखों किताबें हैं. कॉलेज जीवन में किताबों की कमी ने उन्हें अपना पुस्तक संग्रह शुरू करने के लिए प्रेरित किया. रामकृष्ण आश्रम की किताबों से शुरुआत कर उन्होंने धीरे-धीरे एक ऐसा पुस्तकालय बनाया जो अब शोधार्थियों, लेखकों और आम पाठकों के लिए मुफ़्त ज्ञान का भंडार बन चुका है. 

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गौड़ा के पुस्तकालय में 15 लाख से अधिक किताबें हैं, जिनमें 1832 से लेकर हाल ही में प्रकाशित किताबें शामिल हैं. यह पुस्तकालय 22 से अधिक भाषाओं और अनगिनत विषयों को समेटे हुए है — जैसे साहित्य, पौराणिक कथाएं, विज्ञान, तकनीक, बाल साहित्य, यात्रा-वृत्तांत और शोध. चाहे छोटी पुस्तिका हो या भारी ग्रंथ, गौड़ा का संग्रह हर प्रकार की पुस्तक प्रेमियों की जरूरतों को पूरा करता है. (फोटो- Getty Images)
 

गौड़ा के पुस्तकालय में 15 लाख से अधिक किताबें हैं, जिनमें 1832 से लेकर हाल ही में प्रकाशित किताबें शामिल हैं. यह पुस्तकालय 22 से अधिक भाषाओं और अनगिनत विषयों को समेटे हुए है — जैसे साहित्य, पौराणिक कथाएं, विज्ञान, तकनीक, बाल साहित्य, यात्रा-वृत्तांत और शोध. चाहे छोटी पुस्तिका हो या भारी ग्रंथ, गौड़ा का संग्रह हर प्रकार की पुस्तक प्रेमियों की जरूरतों को पूरा करता है. 

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लाइब्रेरी में कन्नड़ भाषा की पुस्तकों को प्रमुखता मिली है, लेकिन पुस्तक माने में हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं की किताबें भी उपलब्ध हैं. गौड़ा की यह लाइब्रेरी एक भाषाई विविधता का संग्रहालय है, जहां हर पाठक को अपनी पसंद और ज़रूरत की पुस्तक मिल जाती है.  (फोटो- Getty Images)
 

लाइब्रेरी में कन्नड़ भाषा की पुस्तकों को प्रमुखता मिली है, लेकिन पुस्तक माने में हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं की किताबें भी उपलब्ध हैं. गौड़ा की यह लाइब्रेरी एक भाषाई विविधता का संग्रहालय है, जहां हर पाठक को अपनी पसंद और ज़रूरत की पुस्तक मिल जाती है. 

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एक गरीब कृषक परिवार से आने वाले अनके गौड़ा ने कन्नड़ साहित्य में एम.ए. किया और पांडवपुरा चीनी कारखाने में 30 वर्षों तक काम किया. उन्होंने अपने वेतन का लगभग 80% किताबें खरीदने में लगा दिया. यात्रा के दौरान शहरों से किताबें खरीदना उनकी आदत बन गई थी. उनका यह समर्पण बताता है कि सीमित संसाधनों के बावजूद कोई व्यक्ति अपने सपनों को कैसे जीवंत कर सकता है. (फोटो- Getty Images)
 

एक गरीब कृषक परिवार से आने वाले अनके गौड़ा ने कन्नड़ साहित्य में एम.ए. किया और पांडवपुरा चीनी कारखाने में 30 वर्षों तक काम किया. उन्होंने अपने वेतन का लगभग 80% किताबें खरीदने में लगा दिया. यात्रा के दौरान शहरों से किताबें खरीदना उनकी आदत बन गई थी. उनका यह समर्पण बताता है कि सीमित संसाधनों के बावजूद कोई व्यक्ति अपने सपनों को कैसे जीवंत कर सकता है. 

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गौड़ा के निजी संग्रह ने अब एक सार्वजनिक पुस्तकालय का रूप ले लिया है, जहां हर वर्ग का व्यक्ति बिना कोई शुल्क दिए किताबें पढ़ सकता है. शोधार्थी, पीएचडी छात्र, शिक्षक, आलोचक, प्रतियोगी परीक्षार्थी और जिज्ञासु पाठक यहां नियमित रूप से आते हैं. यह लाइब्रेरी केवल किताबों का नहीं, बल्कि विचारों, संस्कृतियों और संवादों का संगम बन गई है. (फोटो- Getty Images)
 

गौड़ा के निजी संग्रह ने अब एक सार्वजनिक पुस्तकालय का रूप ले लिया है, जहां हर वर्ग का व्यक्ति बिना कोई शुल्क दिए किताबें पढ़ सकता है. शोधार्थी, पीएचडी छात्र, शिक्षक, आलोचक, प्रतियोगी परीक्षार्थी और जिज्ञासु पाठक यहां नियमित रूप से आते हैं. यह लाइब्रेरी केवल किताबों का नहीं, बल्कि विचारों, संस्कृतियों और संवादों का संगम बन गई है. 

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आज 76 वर्ष की उम्र में भी अनके गौड़ा अकेले इस पुस्तकालय का रखरखाव करते हैं. किताबों की धूल झाड़ना, पाठकों की मदद करना उनका रोज़ का काम है. सीमित संसाधनों और बिना किसी कर्मचारी के बावजूद वे हर दिन 250 से अधिक बोरियों में रखी किताबों को क्रमबद्ध करने में लगे रहते हैं.  (फोटो- Getty Images)
 

आज 76 वर्ष की उम्र में भी अनके गौड़ा अकेले इस पुस्तकालय का रखरखाव करते हैं. किताबों की धूल झाड़ना, पाठकों की मदद करना उनका रोज़ का काम है. सीमित संसाधनों और बिना किसी कर्मचारी के बावजूद वे हर दिन 250 से अधिक बोरियों में रखी किताबों को क्रमबद्ध करने में लगे रहते हैं.

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