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आसानी से पैसा मिलना एक जाल है.. दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज किया धोखाधड़ी का केस

 दिल्ली हाई कोर्ट ने एक तीखे और स्पष्ट फैसले में कहा है कि लालच में अंधे लोग जोखिम को जानबूझकर स्वीकार करते हैं और उन्हें इसके परिणाम भी भुग...


 दिल्ली हाई कोर्ट ने एक तीखे और स्पष्ट फैसले में कहा है कि लालच में अंधे लोग जोखिम को जानबूझकर स्वीकार करते हैं और उन्हें इसके परिणाम भी भुगतने होंगे। कोर्ट ने 24% सालाना रिटर्न का वादा कर निवेशकों को लुभाने के आरोपी शख्स के खिलाफ दर्ज 2 करोड़ रुपये के धोखाधड़ी मामले को रद्द कर दिया।

'आसान पैसा' का जाल


जस्टिस अरुण मोंगा ने अपने 35 पेज के फैसले में 'आसान पैसा' को एक 'जाल' करार दिया और अवास्तविक रिटर्न की चाह रखने वालों को चेतावनी दी। उन्होंने 13 अगस्त को दिए अपने फैसले में कहा, 'जो लोग अवास्तविक वादों के पीछे भागते हैं, उन्हें अपने जोखिम खुद उठाने होंगे। लोग पहले लालच में आकर वित्तीय जाल में कूदते हैं और बाद में धोखा होने का रोना रोते हुए राज्य से मदद मांगने दौड़ते हैं। यह एक कड़वी, लेकिन जरूरी सच्चाई है कि अगर आप असाधारण मुनाफे की चाह रखते हैं, तो असाधारण नुकसान के लिए भी तैयार रहें।'

लालच, जोखिम और परिणाम


जस्टिस मोंगा ने आगे कहा, 'लालच चुनने का मतलब है जोखिम चुनना और जोखिम चुनने का मतलब है परिणाम भुगतना। ऐसे लोग यह दिखावा नहीं कर सकते कि वे किसी जादू से ठगे गए, जब उन्होंने खुद ही उस भ्रम में कदम रखा। हर उस सपने देखने वाले के लिए, जो जल्दी अमीर बनने की चाह रखता है, यह एक चेतावनी है। आसान पैसा एक जाल है। अगर रिटर्न अविश्वसनीय लगता है, तो यह मान लें कि आप अगले शिकार हैं।'


क्या था मामला?


यह मामला 2019 में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज एक FIR से शुरू हुआ था, जिसमें IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत शिकायत दर्ज की गई थी। तीन शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 1.5 करोड़ रुपये के निवेश पर छह महीने के लिए 24% सालाना ब्याज देने का वादा किया था, लेकिन न तो ब्याज दिया और न ही मूल राशि लौटाई। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि आरोपी ने उन्हें 43.66 लाख रुपये में एक कंपनी में 1.25% हिस्सेदारी खरीदने के लिए प्रेरित किया, जो भी वापस नहीं किया गया।


कोर्ट का फैसला


कोर्ट ने इस मामले को रद्द करते हुए कहा कि छह साल बाद भी पुलिस पूरी तरह से चार्जशीट दाखिल करने में नाकाम रही। कोर्ट ने माना कि FIR में धोखाधड़ी के अपराध के आवश्यक तत्वों का अभाव है और यह मामला वास्तव में एक सिविल विवाद है, जिसे आपराधिक मामले के रूप में प्रस्तुत किया गया। जज ने जांच एजेंसी के रवैये को घोर लापरवाही और उचित परिश्रम की कमी करार दिया।

 

जस्टिस मोंगा ने अपने फैसले में यह भी कहा कि निवेशकों द्वारा गैर-टिकाऊ योजनाओं में पैसा डालने से बाजार में असंतुलन पैदा होता है। उन्होंने कहा, "लालच सिर्फ व्यक्तिगत कमजोरी नहीं है, यह व्यापक प्रभाव डालता है। जब निवेशक ऐसी योजनाओं में पैसा लगाते हैं, तो वे बुलबुले को हवा देते हैं, जो वास्तविक उपयोगकर्ताओं को नुकसान पहुंचाता है और बाजार के संतुलन को बिगाड़ता है। जब यह बुलबुला फटता है, तो वे कानून से खुद को पीड़ित साबित करने की उम्मीद करते हैं, अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए।"




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