भारत पर मुगलों ने करीब 200 साल तक राज किया। लेकिन आज का दिन मुगल इतिहास में एक काला अध्याय की तरह गिना जाता है। आज के दिन यानी 5 जुलाई 1658 ...
भारत पर मुगलों ने करीब 200 साल तक राज किया। लेकिन आज का दिन मुगल इतिहास में एक काला अध्याय की तरह गिना जाता है। आज के दिन यानी 5 जुलाई 1658 को औरंगजेब ने अपने बड़े भाई मुराद बख्श को बंदी बनाकर दिल्ली की गद्दी की ओर एक और कदम बढ़ाया। यह घटना मुगल सल्तनत के उत्तराधिकार संग्राम का हिस्सा थी, जो शाहजहां के बीमार पड़ने के बाद शुरू हुआ। चार भाइयों दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंगजेब और मुराद बख्श के बीच सत्ता की इस लड़ाई में औरंगजेब की चालाकी और क्रूरता ने उसे सबसे आगे रखा।
साजिश के तहक मुराद को किया कैद
औरंगजेब ने मुराद को सहयोगी बनाकर शुरू में उसका समर्थन हासिल किया। दोनों ने मिलकर आगरा में दारा शिकोह को हराया था। लेकिन औरंगजेब को मुराद की महत्वाकांक्षा और लोकप्रियता खतरे की घंटी लगी। 5 जुलाई 1658 को मथुरा के पास मुराद को नशे की हालत में धोखे से बंदी बना लिया गया। उसे पहले आगरा के किले में और बाद में ग्वालियर किले में कैद कर दिया गया। यह औरंगजेब की उस रणनीति का हिस्सा था, जिसमें उसने अपने सभी भाइयों को एक-एक कर रास्ते से हटाया।
मुगल इतिहास का काला अध्याय
मुराद की कैद ने औरंगजेब की सत्ता पर पकड़ को और मजबूत किया, लेकिन इसने मुगल सल्तनत के नैतिक पतन को भी उजागर किया। भाई-भाई के बीच विश्वासघात और सत्ता की भूख ने मुगल साम्राज्य की नींव को कमजोर करना शुरू कर दिया। मुराद को बाद में 1661 में राजद्रोह के झूठे आरोप में फांसी दे दी गई, जिसने औरंगजेब के शासन को और विवादास्पद बना दिया।
ऐसे बादशाह बना औरंगजेब
इस घटना ने औरंगजेब को दिल्ली की गद्दी तक पहुंचाया, लेकिन यह जीत खून और विश्वासघात से रंगी थी। इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब का यह कदम न केवल उसके भाइयों के लिए, बल्कि पूरे मुगल साम्राज्य के भविष्य के लिए घातक साबित हुआ। मुराद की कैद उस दौर की क्रूर सियासत का प्रतीक बन गई, जो आज भी इतिहास के पन्नों में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है।
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