नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी लेने के मुद्दे पर राष...
नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी लेने के मुद्दे पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए संदर्भ (कानूनी राय मांगना) पर 19 अगस्त से विस्तृत सुनवाई होगी। संविधान पीठ ने इसके साथ ही मामले में सुनवाई सुचारू रूप से हो, इसके लिए पक्षकारों को दलील देने के लिए समय सीमा भी तय कर दी। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 22 जुलाई को केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी का अपना पक्ष रखने को कहा था। पीठ ने मंगलवार को मामले की सुनवाई के लिए समय और तारीख तय करते हुए सभी पक्षों को 12 अगस्त तक अपनी-अपनी दलीलें पेश करने को कहा है।
संविधान पीठ ने कहा है कि केरल और तमिलनाडु राज्यों को राष्ट्रपति के संदर्भ की स्थिरता और विचारनीयता पर अपनी प्रारंभिक आपत्तियां उठाने के लिए पहले एक घंटे का समय दिया जाएगा। पीठ ने कहा कि इसके बाद, 19, 20, 21, 26 अगस्त को राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए संदर्भ का समर्थन करने वाले अटॉर्नी जनरल और केंद्र सरकार की ओर से दलीलें सुनी जाएगी। जबकि संदर्भ का विरोध करने वाले पक्षों की सुनवाई 28 अगस्त, 2, 3 और 9 सितंबर को सुनी जाएगी। पीठ ने कहा कि यदि कोई प्रत्युत्तर हो, तो उस पर 10 सितंबर को सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत को भेजे गए अपने संदर्भ में राष्ट्रपति मुर्मू ने यह संवैधानिक सवाल उठाया है कि ‘क्या सुप्रीम कोर्ट राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के मुद्दे पर फैसला लेने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय कर सकती है? राष्ट्रपति मुर्मू ने शीर्ष अदालत के 8 अप्रैल के उस फैसले के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी है, जिसमें विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय कर दी गई थी। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश गवई के अलावा, जस्टिस सूर्यकांत, विक्रमनाथ, पीएस नरसिम्महा और ए.एस. चंदुरकर भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था कि संविधान राज्यपाल को विधानसभा से पारित विधेयकों पर अनिश्चित काल तक अपने पास रोककर रखने या कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए ‘पूर्ण वीटो या ‘पॉकेट वीटो का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देता है। शीर्ष अदालत ने विधानसभा से पारित कई विधेयकों को लंबे समय से राष्ट्रपति के विचारार्थ रोककर रखने के तमिलनाडु के राज्यपाल के कदम को असंवैधानिक, गैर कानूनी और मनमाना घोषित करते हुए यह फैसला दिया था। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में राज्यपाल द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए समय-सीमा भी निर्धारित कर दिया था। फैसले में, कहा गया है कि राज्यपालों को उनके समक्ष पेश किसी भी विधेयक के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत कोई विवेकाधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा। साथ ही फैसले में विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति के लिए भी समय सीमा तय कर दिया था।
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