Page Nav

HIDE

Breaking News:

latest

तड़पते शरीर को चूने में डाला, फिर शव को हाथी के पैर से बांधकर घसीटा; शहीद नवाब मज्जू खां की कुर्बानी की कहानी

 उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जिला पूरी दुनिया मे पीतल नगरी के नाम से जाना जाता है, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भी मुरादाबाद ...


 उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जिला पूरी दुनिया मे पीतल नगरी के नाम से जाना जाता है, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भी मुरादाबाद का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. यहां के नवाब मज्जू खां ने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया था. उनकी कहानी जानकार आप हैरान रह जाएंगे. नवाब मज्जू खां का पूरा नाम मजीउददीन खां था. वो मुरादाबाद के शासक और एक सच्चे देशभक्त थे.


उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी को ठुकराकर आजादी की जंग में अपनी जान कुर्बान कर दी. 1857 की क्रांति में नवाब मज्जू खां ने मुरादाबाद को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने में अहम भूमिका निभाई. मई 1857 में उन्होंने अंग्रेजों को मुरादाबाद से खदेड़कर शहर को आजाद करा लिया. उनकी इस वीरता ने अंग्रेजों को बौखला दिया. फिर अंग्रेजों ने बदले की भावना से नवाब सहाब पर झूठे इल्जाम लगाए.

 

रोहिलखंड पर अंग्रेजों का कब्जा

 

अंग्रेजों ने उनकी छवि को धूमिल करने की कोशिश की, लेकिन नवाब मज्जू खां खानदानी नवाब और तोपखाने के मालिक थे. मज्जू खां ने अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार करने के बजाय आजादी के लिए लड़ना चुना. 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने लखनऊ के नवाब सआदत अली खां से एक समझौते के तहत अवध का आधा हिस्सा, जिसमें रोहिलखंड भी शामिल था, हड़प लिया.


इसके बाद रोहिलखंड को तीन जिलों-बरेली, बदायूं और मुरादाबाद में बांट दिया गया. मुरादाबाद को इसका मुख्य केंद्र बनाया गया. फिर 1802 में डब्ल्यू लेसिस्टर को इसका पहला कलेक्टर नियुक्त किया गया, लेकिन अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ जनता में असंतोष बढ़ता गया और नवाब मज्जू खां ने इस असंतोष को एक संगठित विद्रोह में बदल दिया.


1857 की जंग और नवाब का नेतृत्व


9 मई 1857 को मुरादाबाद में आजादी की पहली जंग शुरू हुई. 19 मई को नवाब मज्जू खां के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ योजनाबद्ध हमला बोला, जिसमें 29वीं बटालियन भी शामिल थी. इस जंग में अंग्रेजी कारिंदे टिक न सके. उधर, वाहजुद्दीन उर्फ मौलवी मन्नू के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने जेल तोड़ दी, जिससे अंग्रेज जेलर डॉ. हैन्स को छिपना पड़ा.


3 जून 1857 तक मुरादाबाद पूरी तरह अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त हो चुका था. इस जीत के लिए बादशाह बहादुर शाह जफर ने नवाब मज्जू खां को 18 जून 1857 को मुरादाबाद की सनद-ए-हुकूमत सौंपी. अंग्रेजों को यह हार बर्दाश्त नहीं हुई. रामपुर के नवाब यूसुफ खां पर अंग्रेजों हुकुमत के साथ होने का आरोप है. इतिहासकार बताते हैं कि रामपुर नवाब ने अंग्रेजों के साथ मिलकर साजिश रची.


नवाब ने दिया बलिदान


22 अप्रैल 1858 को जब बहादुर शाह जफर के बेटे फिरोजशाह मुरादाबाद आए तो अंग्रेजों और रामपुर नवाब ने मुरादाबाद पर हमला कर दिया. 25 अप्रैल 1858 को सर क्रोक्राफ्ट विल्सन के नेतृत्व में एक गद्दार नौकर की मदद से सात अंग्रेज सिपाही नवाब के महल में घुस गए. नवाब मज्जू खां ने अकेले ही उन सातों को मार गिराया, लेकिन बाद में भारी संख्या में आई अंग्रेजी फौज ने उन पर हमला किया. गोली लगने से नवाब शहीद हो गए.


अंग्रेजों ने नवाब के शव के साथ भी बर्बरता की. उनके तड़पते शरीर को चूने में डालकर पानी डलवाया गया, जिससे उनका शरीर पूरी तरह नष्ट हो गया. इसके बाद उनके शव को उनके ही हाथी के पांव से बांधकर गलशहीद के रौशन मियां वाले कब्रिस्तान में फेंक दिया गया. उनके शव को दफनाने की इजाजत भी नहीं दी गई. जिन बाबा साहब ने नवाब को कफन-दफन दिया, उन्हें भी फांसी पर चढ़ा दिया गया.


गलशहीद: शहीदों की मिट्टी


गलशहीद का असली नाम गिल शहीद था, जिसका अर्थ फारसी में ‘शहीदों की मिट्टी’ है. यह मुहल्ला उन शहीदों की याद में मशहूर हुआ, जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी दी थी. आज भी वहां एक पेड़ मौजूद है, जिस पर नवाब के समर्थकों को फांसी दी गई थी. सन 2000 में मरहूम जावेद रशीद एडवोकेट के नेतृत्व में ‘शहीद-ए-वतन नवाब मज्जू खां मेमोरियल कमेटी’ का गठन हुआ.


कमेटी ने नवाब की कब्र की निशानदेही कर मजार बनवाया. हर साल 15 अगस्त, 26 जनवरी और 25 अप्रैल को जिला प्रशासन और अन्य अधिकारी मजार पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष वकी रशीद एडवोकेट इस गौरवशाली विरासत को संजोए रखने के लिए कटिबद्ध हैं.




कोई टिप्पणी नहीं