राजधानी दिल्ली शहर इतिहास की परतों में लिपटा हुआ है। इसकी गलियों, सड़कों और इमारतों में सैकड़ों साल पुरानी कहानियां बसती हैं। इनमें से एक ह...
राजधानी दिल्ली शहर इतिहास की परतों में लिपटा हुआ है। इसकी गलियों, सड़कों और इमारतों में सैकड़ों साल पुरानी कहानियां बसती हैं। इनमें से एक है खूनी दरवाजा, जो अपने नाम की तरह एक डरावने और खूनी इतिहास को समेटे हुए है। बहादुरशाह जफर मार्ग पर दिल्ली गेट के पास खड़ा यह स्मारक न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि इसके साथ जुड़ी कहानियां इसे रहस्य और रोमांच से भर देती हैं। आज हम इसी खूनी दरवाजे की कहानी बताने जा रहे हैं।
शेरशाह सूरी का काबुली दरवाजा
खूनी दरवाजा, जिसे पहले काबुली दरवाजा या लाल दरवाजा के नाम से जाना जाता था, सूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह सूरी के शासनकाल (1540-1545) में बनवाया गया था। यह दरवाजा फिरोजाबाद (आज का फिरोज शाह कोटला) के लिए बनाया गया था और इसका नाम इसलिए पड़ा क्योंकि अफगानिस्तान से आने वाले कारवां इस रास्ते से दिल्ली में प्रवेश करते थे। 15.5 मीटर ऊंचा यह द्वार दिल्ली के क्वार्टजाइट पत्थर से निर्मित है, जिसमें तीन मंजिलें और सीढ़ियां हैं, जो इसे एक भव्य और मजबूत बनाती हैं। इसकी जालीदार खिड़कियां और सुरंगनुमा गलियारे इसे सैन्य और स्थापत्य नजरिए से खास बनाते हैं।
कैसे नाम पड़ गया खूनी दरवाजा?
खूनी दरवाजे का नाम बदलने की कहानी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से शुरू होती है। इस दरवाजे ने उस दौर की क्रूरता को करीब से देखा। इतिहासकार आरवी स्मिथ अपनी किताब ‘Delhi: Unknown Tales of a City’ में लिखते हैं कि यहां ब्रिटिश अधिकारी विलियम हॉडसन ने अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के दो बेटों, मिर्जा मुगल और मिर्जा सुल्तान, साथ ही उनके पोते मिर्जा अबू बकर को गोली मार दी थी। 22 सितंबर 1857 को हुमायूं के मकबरे से लाल किले ले जाए जाते समय इन शहजादों को भीड़ के सामने सरेआम मौत के घाट उतारा गया। इस घटना ने इस गेट को खूनी दरवाजा का नाम दे दिया।
इसके अलावा, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 1739 में ईरानी शासक नादिर शाह के दिल्ली पर आक्रमण के दौरान भी इस दरवाजे के आसपास भयंकर नरसंहार हुआ था। हालांकि, कुछ स्रोतों के अनुसार यह खूनखराबा चांदनी चौक के दरीबा मुहल्ले में स्थित एक अन्य काबुली दरवाजे के पास हुआ था। फिर भी खूनी दरवाजे की छवि एक भयावह स्थल के रूप में बनी रही।
मुगल काल की क्रूर कहानियां
खूनी दरवाजे का इतिहास केवल 1857 तक सीमित नहीं है। मुगल काल में भी इसने कई क्रूर घटनाओं को देखा। कहा जाता है कि जब जहांगीर सम्राट बने, तो उन्होंने अपने पिता अकबर के नवरत्नों में से एक, अब्दुल रहीम खानखाना (रहीम दास) के दो बेटों को इस दरवाजे पर मरवा दिया और उनके शवों को यहीं छोड़ दिया गया। इसके अलावा, औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को सत्ता के लिए हराने के बाद उनका सिर काटकर इस दरवाजे पर लटकाया था। ये कहानियां असत्यापित है।
1947 का दर्दनाक अध्याय
स्वतंत्रता के बाद 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान खूनी दरवाजा फिर एक दुखद गवाह बना। इस दौरान हुए दंगों में सैकड़ों शरणार्थियों की हत्या इस क्षेत्र में हुई। स्थानीय लोगों का कहना है कि उस समय की चीखें और दर्द आज भी इस जगह की हवा में गूंजते हैं। कुछ किंवदंतियों में यह भी कहा जाता है कि मॉनसून के मौसम में इस दरवाजे की छत से खून की बूंदें टपकती हैं, हालांकि इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
आधुनिक युग में खूनी दरवाजा
2002 में खूनी दरवाजा एक बार फिर सुर्खियों में आया, जब मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की एक छात्रा के साथ यहां दुष्कर्म की घटना हुई। इस घटना के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस स्मारक को आम जनता के लिए बंद कर दिया और इसे ताला लगा दिया गया। आज यह स्मारक ASI द्वारा संरक्षित है और पर्यटक इसे केवल बाहर से देख सकते हैं। फिर भी, इसके आसपास का माहौल और इसकी कहानियां इसे रहस्यमयी बनाए रखती हैं।
क्यों देखें खूनी दरवाजा?
खूनी दरवाजा दिल्ली के उन 13 ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है, जो आज भी मौजूद हैं। यह न केवल शेरशाह सूरी की स्थापत्य कला का नमूना है, बल्कि मुगल काल, 1857 के विद्रोह और 1947 के विभाजन की कहानियों को अपने में समेटे हुए है। इतिहास प्रेमियों और उन लोगों के लिए जो दिल्ली के अनछुए पहलुओं को जानना चाहते हैं, यह जगह एक अनूठा अनुभव देती है। यहां खड़े होकर आप उस इतिहास को महसूस कर सकते हैं, जो खून, बलिदान और सत्ता के खेल से रंगा हुआ है।
कैसे पहुंचें?
खूनी दरवाजा दिल्ली के बहादुरशाह जफर मार्ग पर, दिल्ली गेट के पास और फिरोज शाह कोटला मैदान के सामने स्थित है। यहां पहुंचना आसान है, आप मेट्रो से दिल्ली गेट स्टेशन तक जा सकते हैं या फिर टैक्सी और ऑटो रिक्शा का उपयोग कर सकते हैं। यह स्मारक मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के प्रवेश द्वार के पास है, जो इसे ढूंढने में मदद करता है।
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