राजधानी समेत एनसीआर के शहरों में प्रतिबंध के बावजूद चाइनीज मांझे की बिक्री जारी है। यह मांझा इंसानों के साथ बेजुबानों की जिंदगी की डोर भी क...
राजधानी समेत एनसीआर के शहरों में प्रतिबंध के बावजूद चाइनीज मांझे की बिक्री जारी है। यह मांझा इंसानों के साथ बेजुबानों की जिंदगी की डोर भी काट रहा है। इस वर्ष अलग-अलग स्थानों पर मांझे की चपेट में आने से कई लोगों की जान जा चुकी है। कुछ अब तक इसके जख्म से नहीं उबर पाए हैं। पक्षियों की हालत भी कुछ ऐसी ही है। पक्षी चिकित्सालयों में पहुंचे आधे से अधिक परिंदे मांझे के कारण घायल हुए हैं।
चांदनी चौक के दिगंबर जैन लाल मंदिर में स्थित पक्षियों के धर्मार्थ चिकित्सालय में मांझे की चपेट में आने वाले 20 से 30 परिंदों को रोजाना भर्ती कराया जा रहा है। इनमें से कई पक्षियों की अधिक खून बहने से मौत भी हो रही है। इनमें कबूतर, चील, तोता, कौवा शामिल हैं। घायल पक्षियों में कबूतरों की संख्या सबसे अधिक है। अलग-अलग इलाकों से लोग इन पक्षियों को लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। बीते तीन दिन में मांझे से घायल लगभग 100 पक्षी भर्ती कराए गए हैं।
इससे चिकित्सालय के आधे से अधिक बेड भर गए हैं। अस्पताल में ढाई हजार के करीब बेड हैं। आलम यह है कि मांझे से घायल पक्षियों को ही केवल भर्ती किया जा रहा है। इसके अलावा इलाज के लिए आने वाले पक्षियों को दवा देकर वापस कर रहे हैं।
पक्षियों के बच्चों की भी हो रही है मौत
वजीराबाद गांव में वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू के पास रोजाना पांच से 10 घायल पक्षी आ रहे हैं। इनमें सबसे अधिक चील हैं। साथ ही, उल्लू भी हैं। चिंताजनक है कि पक्षियों के बच्चे भी मांझे में उलझकर जान गंवा रहे हैं। तेज धार मांझे के कारण कई पक्षियों के पंख कटकर अलग हो जा रहे हैं। तेज धार चाइनीज मांझे के साथ सादा धागा भी पक्षियों के लिए घातक साबित हो रहा है।
बीते वर्ष 3500 के करीब घायल पक्षी आए थे
रेस्क्यू केंद्र के अध्यक्ष मोहम्मद सऊद ने बताया कि उड़ रहे पक्षियों को मांझा नजर नहीं आया और वे उसकी चपेट में आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि बीते वर्ष 3500 के करीब घायल पक्षी आए थे। इनमें 50 प्रतिशत मांझे से घायल पक्षी थे। पतंगबाजी का शौक रखने वालों की लापरवाही इंसानों के साथ बेजुबान पक्षियों की जान पर भारी पड़ रही है।
हर साल औसतन दो लोग जान गंवा रहे
राजधानी में जुलाई से शुरू होने वाला पतंगबाजी का दौर 15 अगस्त के बाद तक जारी रहता है। इस दौरान हर साल औसतन दो से तीन लोगों की मौत चाइनीज मांझे की चपेट में आने से हो जाती है। वहीं, 40 से ज्यादा लोग घायल होते हैं।
चीनी मांझे पर प्रतिबंध के बावजूद हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। चोरी-छिपे इनकी बिक्री जारी है। दिल्ली के जीटीबी अस्पताल, स्वामी दयानंद अस्पताल, खिचड़ीपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जग प्रवेश चंद्र अस्पताल में हर साल मांझे से घायल करीब 20 से 25 लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं। सबसे ज्यादा पतंगबाजी भी पूर्वी दिल्ली, उत्तर-पूर्वी दिल्ली और शाहदरा क्षेत्र में होती है। इसकी वजह से घायल होने के मामले भी इन्हीं क्षेत्रों में आते हैं। जीटीबी अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि जुलाई और अगस्त दो माह में चीनी मांझे से घायल होने के मामले सबसे ज्यादा आते हैं। साल के अन्य महीनों में ऐसे एक-दो मामले की आते हैं।
ऐसे रखें अपना ध्यान
- जिन इलाकों में पतंगबाजी ज्यादा होती है, वहां गुजरते समय अपने गले को अच्छे से ढंक लें
- दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट का शीशा जरूर बंद रखें
- मांझा गले या शरीर के किसी भी हिस्से में फंस जाए, तो उसे झटके से अलग न करें
- फ्लाइओवर के आसपास वाहन की रफ्तार धीमी रखें
- कहीं मांझा दिखता है, तो पुलिस को सूचित करें
- चाइनीज मांझे के साथ देसी धागा भी पक्षियों को जख्मी कर रहा, अस्पताल में काफी बेड भरे
- कई पक्षी पंख कटने और हड्डियां टूटने के कारण अब दोबारा उड़ने के काबिल नहीं रहे
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