दिल्ली हाई कोर्ट ने आज पति-पत्नी के बीच चल रहे विवाद के मामले में अहम टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों में खासकर जहां आर्थिक ...
दिल्ली हाई कोर्ट ने आज पति-पत्नी के बीच चल रहे विवाद के मामले में अहम टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों में खासकर जहां आर्थिक निर्भरता और जानकारी छिपाने के आरोप हों,एक संवेदनशील और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। पत्नी ने कोर्ट में अलग रह रहे पति के खिलाफ अपने दावों का समर्थन करने के लिए गवाहों को बुलाने की अनुमति मांगी थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी याचिका स्वीकार कर ली है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा,"वैवाहिक मुकदमेबाजी,खासकर जहां आर्थिक निर्भरता और जानकारी छिपाने के आरोप हों,वहां एक संवेदनशील और व्यावहारिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। यह असामान्य नहीं है कि जब पति-पत्नी के बीच वैवाहिक मतभेद होते हैं,तो कई बार पति अपनी वास्तविक आय को छिपाने और अपनी पत्नियों को वैध बकाया का भुगतान करने से बचने के लिए अपनी संपत्ति को हस्तांतरित करने का सहारा लेते हैं।"
महिला ने बैंक अधिकारियों को बुलाने की मांग की थी,साथ ही यह भी कहा था कि वे सभी जरूरी दस्तावेज पेश करें ताकि अलग हो चुके पति की ओर से अपनी संपत्ति की बिक्री से पैसे के हेरफेर को रिकॉर्ड पर लाया जा सके। जस्टिस दूडेजा ने फैमिली कोर्ट के 7 जून, 2024 के उस आदेश को रद्द कर दिया,जिसमें महिला की गवाहों को बुलाने की याचिका खारिज कर दी गई थी। महिला ने दावा किया था कि उसे पता चला है कि उसके अलग हो चुके पति ने कोर्ट को गुमराह करने और पत्नी को उचित गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए अपनी संपत्ति मां और भाई जैसे परिवार के सदस्यों के नाम पर ट्रांसफर कर दी है।
इसके उलट,पति ने दलील दी कि जिन गवाहों को बुलाने की मांग की जा रही थी,उनका महिला के मामले से कोई संबंध नहीं है और CrPC की धारा 311 (जरूरी गवाह को बुलाने या मौजूद व्यक्ति की जांच करने की शक्ति) के तहत दायर आवेदन केवल मामले को लटकाने की चाल थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते की राशि तय करने में पति की आर्थिक स्थिति,जिसमें उसकी आय,संपत्ति और साधन शामिल हैं,एक अहम विचार है।
अदालत ने कहा कि पति के परिवार के सदस्यों के बैंक खातों का विवरण मंगाकर,याचिकाकर्ता पत्नी नोएडा की संपत्ति की बिक्री से हुए पैसों के हेरफेर की पूरी कड़ी को रिकॉर्ड पर लाना चाहती है,ताकि यह साबित हो सके कि उन पैसों का इस्तेमाल प्रतिवादी की ओर से शक्ति नगर की संपत्ति खरीदने के लिए किया गया था। याचिकाकर्ता को इसे साबित करने का मौका नहीं देना भरण-पोषण की कार्यवाही के उद्देश्य को विफल कर देगा। जस्टिस दूडेजा ने टिप्पणी की कि जबकि भरण-पोषण की याचिका 2013 में दायर की गई थी, CrPC की धारा 311 के तहत आवेदन अंतिम बहस के चरण में दायर किया गया था।
कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि CrPC की धारा 311 के तहत शक्ति का प्रयोग जांच,मुकदमे और अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में किया जा सकता है। ऐसी शक्ति का प्रयोग अंतिम बहस के चरण में भी किया जा सकता है। आदेश में आगे कहा गया कि फैमिली कोर्ट का प्रक्रियात्मक इतिहास पर निर्भर रहना,जैसे कि कथित देरी और कई आवेदन,अपने इनकार को सही ठहराने के लिए,याचिकाकर्ता के दावे को साबित करने के उचित अवसर के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है।
आदेश में यह भी कहा गया कि फैमिली कोर्ट उन गवाहों के लिए मांगे गए सबूतों की प्रासंगिकता और आवश्यकता पर विचार करने में विफल रहा, जिन्हें बुलाया जाना है,क्योंकि ये भरण-पोषण के निर्धारण को प्रभावित करते हैं,जो जीवनयापन का मामला है। आदेश में कहा गया,"फैमिली कोर्ट को CrPC की धारा 311 के तहत अपनी सहायक शक्तियों की अधिक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या अपनानी चाहिए थी,बजाय इसके कि वह अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाए।"
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