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मेधा पाटकर को नहीं मिली राहत, दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखी सजा

  दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दायर मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सुनाई गई सजा को मंग...

 

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दायर मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सुनाई गई सजा को मंगलवार को बरकरार रखा। जस्टिस शालिंदर कौर ने कहा कि अधीनस्थ अदालत के आदेश में किसी दखल की जरूरत नहीं है। इसी आदेश के खिलाफ पाटकर ने हाई कोर्ट का रुख किया था।

 

जस्टिस कौर ने कहा, इस अदालत को (अधीनस्थ अदालत के) आदेश में कुछ भी अवैध नहीं मिला और फैसले में किसी भी तरह के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए इसे (अपील को) खारिज किया जाता है। सक्सेना ने यह मामला 23 साल पहले दायर किया था, जब वह गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे।

 

नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी पाटकर ने सत्र अदालत के दो अप्रैल के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सेशन कोर्ट ने मामले में मजिस्ट्रेट कोर्ट की ओर से उन्हें दी गई सजा को बरकरार रखा है। मजिस्ट्रेट अदालत ने एक जुलाई 2024 को पाटकर को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी करार देते हुए पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी और उन पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

 

सत्र अदालत ने पाटकर को आठ अप्रैल को 25,000 रुपये का परिवीक्षा बाण्ड भरने पर "अच्छे आचरण की परिवीक्षा" पर रिहा कर दिया था और उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना भरने की पूर्व शर्त भी लागू की थी। हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश में पाटकर की सजा को निलंबित कर दिया था और उन्हें 25,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी।


परिवीक्षा अपराधियों के साथ गैर-संस्थागत व्यवहार और सजा के सशर्त निलंबन की एक विधि है, जिसमें अपराधी को दोषसिद्धि के बाद जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण के बाण्ड पर रिहा कर दिया जाता है। नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष के रूप में सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 24 नवंबर 2000 को उनके संबंध में अपमानजनक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के लिए मामला दर्ज कराया था।


मजिस्ट्रेट अदालत ने 24 मई 2024 को माना कि पाटकर के बयान न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि सक्सेना के बारे में "नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए तैयार किए गए थे। सत्र न्यायालय ने पाटकर की मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका दो अप्रैल को खारिज कर दी थी। उसने कहा था कि पाटकर को उचित रूप से दोषी ठहराया गया" था और मानहानि मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील में कोई दम नहीं है।




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