दिल्ली उच्च न्यायालय में बुधवार को फिल्म 'उदयपुर फाइल्स-कन्हैया लाल टेलर मर्डर' को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ...
दिल्ली उच्च न्यायालय में बुधवार को फिल्म 'उदयपुर फाइल्स-कन्हैया लाल टेलर मर्डर' को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या उसे फिल्म में छह कट्स लगाने का आदेश देने का अधिकार है।
अदालत ने यह सवाल तब उठाया जब उसे बताया गया कि केंद्र ने सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए फिल्म के निर्माताओं को एक डिस्क्लेमर के अलावा छह कट लगाने का सुझाव दिया था। साथ ही अदालत को यह भी बताया गया कि फिल्म को पुनः प्रमाणित तो कर दिया गया है, लेकिन मामला उच्च न्यायालय में लंबित होने के कारण इसे निर्माताओं को जारी नहीं किया गया है।
जिसके बाद अदालत ने केंद्र सरकार से उसे प्राप्त अधिकार के बारे में सवाल पूछा। दरअसल यह सवाल इसलिए भी किया गया क्योंकि याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा था कि केंद्र सरकार ने कट्स लगाने का जो आदेश दिया है, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के अंतर्गत उसे ऐसा करने का अधिकारी ही प्राप्त नहीं है।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा, 'आपको कानून के दायरे में रहकर ही अपनी शक्तियों का प्रयोग करना होगा। आप इससे आगे नहीं जा सकते। आपने जो आदेश पारित किया है, उसमें छह कट लगाने आदि का प्रावधान है, क्या यह अधिकार कानून के तहत आपके पास उपलब्ध है?'
अदालत में केंद्र और केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने दलील दी कि फिल्म दो चरणों में फिल्टर की गई है, पहली सेंसर बोर्ड द्वारा जिसने 55 कट सुझाए और दूसरी समिति द्वारा जिसने छह और कट माँगे, इस तरह कुल 61 कट हो गए।
यह याचिका कन्हैयालाल हत्याकांड के एक आरोपी मोहम्मद जावेद ने दायर की है, जिसे राजस्थान उच्च न्यायालय से जमानत मिली हुई है। याचिका में उसने तीन प्रमुख कारण बताते हुए फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की है। उसका कहना है कि फिलहाल मामला कोर्ट के विचाराधीन है, ऐसे में इसके रिलीज होने से उसके मुकदमे पर भी असर पड़ेगा।
जावेद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने दलील दी कि अगर यह फिल्म, जो पूरी तरह से आरोप पत्र पर आधारित है, रिलीज़ होती है तो अभियुक्त के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
याचिका में फिल्म की रिलीज पर बैन लगाने की मांग करते हुए उसने मुख्य रूप से तीन दलीलें दीं, जिसमें से पहली दलील यह दी गई कि इस फिल्म की रिलीज से उसके फेयर ट्रायल का अधिकार प्रभावित होता है। दूसरी प्रमुख दलील में उसने कहा कि केंद्र सरकार को डिविजनल ज्यूरिस्डिक्शन में सीन को कट करने का अधिकार नहीं है, वहीं तीसरी दलील में उसने कहा कि फिल्म के निर्माता न्यायालय की अवमानना के दोषी हैं। किसी ऐसे मामले पर फिल्म नहीं बनाई जा सकती जो न्यायालय में विचाराधीन हो।
बुधवार को हुई सुनवाई के अंत में न्यायालय ने एएसजी से सवाल किया है कि क्या धारा 6 सिनेमैटोग्राफ एक्ट में जो रीजनल पॉवर केंद्र सरकार को दिया गया है, उसमें क्या केंद्र सरकार किसी भी फिल्म के सीन्स को कट करने आदेश दे सकती है जबकि इस तरह का कोई प्रावधान सेक्शन 6 में नहीं दिया गया है। तो एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने शुक्रवार को यानी अगली सुनवाई वाले दिन इस प्रश्न का जवाब देने की बात कही।
मामले की अगली सुनवाई 1 अगस्त को होगी। मौलाना अरशद मदनी द्वारा दायर याचिका पर भी 1 अगस्त को सुनवाई होनी है।
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