किडनी के इलाज में बिक गया घर-बार, फिर कैसे मसीहा बने गांव वाले? बोले-रामावतार को मरने नहीं देंगे


 तीन साल से खराब है किडनी, इलाज में खेती बाड़ी तक बिक गई. आर्थिक रूप से टूट चुके रामावतार के लिए अब उसके गांव वाले संबल बन गए हैं. गांव वालों ने कहा कि रामावतार उनका अपना है और उसे वह हारने नहीं देंगे. उधर, रामावतार की दादी ने कहा कि उसकी जिंदगी बचाने के लिए वह खुद अपनी एक किडनी देने को तैयार हैं. लेकिन आगे इलाज कराने को उनके पास पैसा नहीं है. ऐसे में ग्रामीणों ने भी तय किया है कि कम से कम पैसे के लिए तो वह रामावतार को हारने नहीं देंगे.


गांव की पंचायत में यही कहते हुए गांव वालों ने एक ही दिन में आपस में चंदा किया सवा सात लाख रुपये जुटाकर रामावतार के परिजनों को सौंप दिया. राजस्थान के नागौर में रहने वाले रामावतार के बारे में हाल ही में एक खबर स्थानीय मीडिया में प्रकाशित हुई थी. इस खबर में बताया गया था कि किडनी की बीमारी से त्रस्त आ चुके रामावतार को तीन साल तक इलाज में ही सारी संपत्तियां बेचनी पड़ी है. अब उसे आगे के इलाज के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है. ऐसे स्थिति में रामावतार भी अब हिम्मत हार गया है.


एक दिन में जुटाया सात लाख का चंदा


यह खबर छपते ही लोग रामावतार की जान बचाने के लिए आगे आए हैं. मंगलवार को गांव के संतोष नाथ मंदिर में गांव वालों की एक सभा हुई. इस घटना पर विधिवत चर्चा हुई. तय हुआ कि रामावतार को ऐसे मरने नहीं दिया जाएगा. फिर क्या था, जिसके पास जो और जितना बन पड़ा, रामावतार को बचाने के लिए चंदा देना शुरू कर दिया. यहां तक कि दिहाड़ी मजदूरों और गरीब गुरबों ने भी अपनी झोली पलट दी. इससे देखते ही देखते सात लाख 67 हजार रुपये जमा हो गए.


किसी ने 100 दिए तो किसी ने सवा दो लाख


रामावतार की जिंदगी बचाने के लिए किसी ने 100 रुपये की मदद दी तो किसी ने हजार पांच सौ. वहीं गांव की सरपंच रेखा गालवा ने बताया कि उनके ससुर रामातार की जान बचाने के लिए सवा दो लाख रुपये का सहयोग दिया है. इस मौके पर गांव वालों ने निर्णय किया कि अभी तो यह शुरुआत है. जरूरी हुआ तो रामावतार के लिए और चंदा जुटाया जाएगा. फिलहाल रामअवतार बावरी का इलाज अहमदाबाद के एक अस्पताल में चल रहा है.




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