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कालीघोड़ी के जंगल में मां काली का डेरा! यहां गायब हो जाती है जलधारा, पानी से दूर होते हैं कष्ट

  मध्य प्रदेश अपनी सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मिक केंद्रों और धार्मिक पर्यटन को लेकर देशभर में मशहूर है. प्रदेश में ऐसे कई धार्मिक स्थान है, ...

 


मध्य प्रदेश अपनी सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मिक केंद्रों और धार्मिक पर्यटन को लेकर देशभर में मशहूर है. प्रदेश में ऐसे कई धार्मिक स्थान है, जो बड़े दिव्य और अलौकिक है, लेकिन इसके बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी में नहीं है. ऐसे ही एक दिव्य देवी स्थान प्रदेश के खंडवा में स्थित है. यहां कालीघोड़ी नामक घना जंगल है, जहां सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की पहाड़ी पर तंत्र-मंत्र और शक्ति की देवी मां काली का वास है. यहां घने जंगलों के बीच मां काली का मंदिर बना हुआ है, जिसकी देखरेख और सेवा उदासीन अखाड़े के संत महात्मा करते हैं.


यह मंदिर खंडवा जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर कालीघोड़ी के जंगलों में स्थित है. बताया जाता है, कि यह जंगल सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और मेलघाट टाइगर रिजर्व का गलियारा है. जहां से बाघों की पैदल यात्रा चलती रहती है. यानी एक टाइगर रिजर्व से दूसरे टाइगर रिजर्व में जाने के लिए बाघ इसी रास्ते का इस्तेमाल करते हैं. बाघ के साथ-साथ इस जंगल में तेंदुआ, चीतल सहित कई अन्य वन्य प्राणी भी है.


क्या है मंदिर की मान्यताएं


काली घोड़ी में स्थित काली माता के इस दिव्य मंदिर से कई किंवदंतियां जुड़ी हुई है. आसपास के लोग बड़ी संख्या में यहां दर्शन तथा पूजन करने के लिए आते रहते हैं. मान्यता है, कि मंदिर के पास बहने वाली जलधारा काली माता के पास से प्रकट होती है और वहां से आगे ना बढ़ते हुए विलुप्त हो जाती है. श्रद्धालुओं की आस्था है, कि इस जलधारा के जल और कालीमाता की विभूति (भभूत) लगाने से कष्टों, रोगों का नाश होता है.


रहता है साधुसंतों का डेरा


बैतूल राष्ट्रीय राज्य मार्ग से लगभग 500 मीटर भीतर घने जंगल में श्रद्धालु पैदल पहुंचकर मां काली के दर्शन करते हैं. नवरात्रि में यहां विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए भोजन प्रसादी की व्यवस्था की जाती है. इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां नवरात्रि पर पूजन करने पहुंचते हैं. तंत्र-मंत्र की साधक मां काली से शक्तियां मांगने कई ज्ञातअज्ञात साधुसंतों का यहां डेरा होता है. श्रद्धालु यहां मां काली की जलधारा के अमृत जल का प्रसाद और मां काली के यज्ञ की विभूति अपने शरीर पर लगाते हैं.


120 साल से पुरान है मंदिर


बताया जाता है कि मंदिर कि स्थापना विधिवत रूप से 120 साल पुरानी मानी जाती है. मां काली के सेवक पंकज मुनि बाबा बताते हैं, कि इस मंदिर की स्थापना संत घनश्याम दास जी महाराज द्वारा की गई है. संत घनश्याम दास जी महाराज को काली माता की सेवा से कई अद्भुत सिद्धियां प्राप्त हुई थी, जिससे उन्होंने क्षेत्र में रहने वाले लोगों को लाभान्वित किया है. संत घनश्याम दास जी महाराज के जीवन काल में मकड़ाई रियासत के गोंड राजा यहां पूजापाठ करने के लिए पहुंचते थे. और वर्तमान में यहां बड़ी संख्या में क्षेत्र के आदिवासी श्रद्धालु आते हैं.




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